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श्राद्ध करना क्यों है जरुरी ? न कर पाएं तर्पण-पिंडदान, तो करें ये उपाय, पूर्वजों होंगे तृप्त

 

पितरों के प्रति श्रद्धा और प्रेम प्रगट करने के सबके अपने अपने अलग तरीके हो सकते हैं.  सनातन धर्म के अनुसार श्राद्ध पक्ष में पितरों को याद कर कुछ विशेष क्रियाओं द्वारा धन्यवाद का भाव प्रगट किया जाता है.

पूर्वजों की शांति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण, श्राद्ध, पिंडदान बहुत महत्वपूर्ण माना गया है. इस साल पितृ पक्ष 29 सितंबर से शुरू होकर 14 अक्टूबर 2023 तक हैं. ज्योतिषाचार्य अरविंद राय से जानिए श्राद्ध का महत्व, क्यों मृत्यु के बाद श्राद्ध को जरुरी माना गया है.

पितरों के सम्मान का समय है पितृ पक्ष

पितृ पक्ष में पूर्वज पितरलोक से धरती पर अपनों के बीच उन्हें आशीर्वाद देने आते हैं. ज्योतिषाचार्य अरविंद राय के अनुसार श्राद्ध को परिभाषित करते हुए शास्त्र कहते हैं - "श्रद्धार्थमिदं श्राद्धं" अर्थात अपने मृत पितृगण के प्रति श्रद्धा पूर्वक किए जाने वाले कार्य को श्राद्ध कहते हैं. जिससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और फलस्वरूप भौतिक सुख-सुविधाओं के लिए किये गए प्रयत्न सार्थक होनें लगते हैं.

श्राद्ध कर्म से मिलने वाले लाभ:

आयुः प्रजां धनं विद्यां स्वर्गं मोक्षं सुखानि च ।

प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितरः श्राद्धतर्पिता ।।

याज्ञवल्क्य स्मृति का वचन है कि श्राद्धकर्म से प्रसन्न होकर पितर लोक मनुष्यों के लिए आयु, प्रजा, धन, विद्या, स्वर्ग, मोक्ष, सुख और राज्य देते हैं.

नीति ग्रन्थ में पूर्वजों के श्राद्ध का महत्व:

तिल मात्रं अप्युपकारम्  शैलवन् मन्यते साधुः ।

सज्जन और साधू व्यक्ति तिल जैसे छोटे से छोटे उपकार को भी शिला या पहाड़ की तरह ही मानते हैं. धन्यवाद शब्द परिवार तथा समाज में एकता और प्रेम को बढाता है.  पितरों और माता-पिता के कारण ही तो हमें यह जीवन तोहफे के रूप में मिला है. वर्ष में एक बार पितृपक्ष में पूर्वजों की मृत्यु तिथि को जल, तिल, यव, कुश और पुष्प से तर्पण करना तथा उनकी आत्मा की शान्ति के लिए गोग्रास देते हुए एक से तीन या पाँच ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए. श्राद्ध कर्म में साधन संपन्न व्यक्ति को कंजूसी नहीं करनी चाहिए.

श्राद्ध करना क्यों है जरुरी ?

"नैव श्राद्धं विवर्जयेत् "।

ज्योतिषाचार्य ने इस श्लोक के जरिए बताया कि जो व्यक्ति निर्धन या गरीब है , उसके लिए भी श्राद्ध करने का विधान है. वह शाक से पूर्वजों का श्राद्ध कर सकता है. श्रद्धा के साथ अगर वह गाय को घास भी खिलाता है तो ऐसे में मान लिया जाता है कि उसने अपने पूर्वजों का विधि विधान पूर्वक श्राद्ध कर दिया.


नहीं कर पाएं तर्पण, पिंडदान तो ऐसे दें पितरों को श्रद्धांजलि

न में अस्ति वितं न धनं च नान्यच्,

श्राद्धोपयोग्यं स्वपितृन्नतोस्मि ।

तृप्यन्तु भक्त्या पितरो मयैतौ,

कृतौ भुजौ वर्त्मनि मारुतस्य ।।

अगर आप पितृ पक्ष में पूर्वजों का तर्पण या पिंडदान नहीं कर पा रहे हों तो इस मंत्र का जाप करते हुए उनके प्रति सम्मान प्रकट करें. श्लोक का अर्थ है- ‘हे मेरे पितृगण, मेरे पास श्राद्ध के उपयुक्त न तो धन है न तो धान्य आदि. अतः शास्त्र के अनुसार एकांत स्थान पर बैठ कर मैंने श्रद्धा और भक्ति से अपने दोनों हाथ आकाश की ओर उठा दिए हैं.  कृपया आप मेरी श्रद्धा और भक्ति से ही तृप्त हो जाइए.


कहने का आशय है कि आर्थिक और व्यवहारिक कारणों वश पितरों के तर्पण के लिए बताये गए तरीकों को जो करने में असमर्थ हैं, वे भी इस प्रकार से अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर सकते हैं.


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